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लेखनी कहानी -24-Sep-2022 यादों के पिटारे से

माना कि तुम पर कोई हक नहीं 
पर यादों को कैसे रोक पाओगे 
जब भी आयेगा बहारों का मौसम 
तुम यादों में आकर बस जाओगे 

जब देखता हूं कोई मेंहदी वाले हाथ 
महक बनकर सांसों में बस जाओगे 
ये तो बता दो कि और कब तक तुम
इस दिल पे बिजलियां गिराते जाओगे 

झील के किनारे जाना छोड़ दिया है 
कमल की तरह फिसल तो ना जाओगे 
किरणों में तेरा अक्स झलकता है 
खुद को कहां और कैसे छिपाओगे 

ऐसी कौनसी जगह है जहां तुम नहीं 
जिधर नजर जायेगी तुम नजर आओगे 
अच्छा किया जो तुमने हमें भुला दिया 
तुम तो कम से कम चैन से सो पाओगे 

रोज शाम को तन जाता है यादों का शामियाना 
अहसासों के मखमली बिछौने पे क्या सुला पाओगे 
इस दिल के समंदर में इस तरह डूबी हो तुम 
चाहे लाख कोशिश कर लो, निकल नहीं पाओगे 

श्री हरि 
24.9.22 


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5 Comments

Swati chourasia

25-Sep-2022 08:45 AM

बहुत खूब 👌

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Pratikhya Priyadarshini

24-Sep-2022 12:38 PM

Bahut khoob 🙏🌺

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Raziya bano

24-Sep-2022 11:42 AM

शानदार

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